एआई और आर्थिक विकास की संभावनाएँ

एआई और आर्थिक विकास की संभावनाएँ

महामारी के बाद, दुनिया भर में आर्थिक विकास धीमा पड़ गया है, महंगाई का दबाव बढ़ गया है, और पर्यावरण के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयास भी सुस्त पड़ गए हैं। इस स्थिति में, उधार लेने की बढ़ती लागत ने ऊर्जा क्षेत्र में आवश्यक बड़े निवेशों को भी कठिन बना दिया है। लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से वैश्विक उत्पादकता की दर में गिरावट आई है।

इन चुनौतियों का समाधान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए हो सकता है। एआई का सही इस्तेमाल न केवल इस घटती उत्पादकता को सुधार सकता है, बल्कि लंबे समय में इसमें महत्वपूर्ण उछाल भी ला सकता है। हालांकि, इस परिवर्तन को महसूस करने में समय लगेगा। एक प्रसिद्ध कहावत है कि हम तकनीक के तात्कालिक प्रभावों को अधिक आँकते हैं, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों को कम समझते हैं। वर्तमान निवेश पैटर्न को देखते हुए, ऐसा लगता है कि इस दशक के अंत तक हमें उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार दिखने लग सकता है।

इन समस्याओं के पीछे तीन मुख्य कारक काम कर रहे हैं

(1) वैश्विक झटके और तनाव

महामारी, युद्ध, जलवायु परिवर्तन, और अंतर्राष्ट्रीय तनाव जैसी घटनाएं आपूर्ति शृंखलाओं (SUPPLY CHAIN) को अधिक विविध और मजबूत बनाने की दिशा में ले जा रही हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया महंगी हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप महंगाई में भी वृद्धि हो सकती है। उदाहरण के लिए, एप्पल (APPLE) अब भारत में अपने उत्पादन का विस्तार कर रहा है, जहां वर्तमान में 15% iPhones का उत्पादन हो रहा है। वहीं, सिर्फ दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देश ही सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर बना रहे हैं, जो सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक हो सकता है।

(2) आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता और स्थानीयकरण की प्रवृत्ति

सरकारें अब उन नीतियों पर ध्यान दे रही हैं जो आवश्यक उत्पादन और आपूर्ति शृंखलाओं को अपने देश में या मित्र राष्ट्रों में लाने पर जोर देती हैं। इस तरह की नीतियों का उद्देश्य न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है, बल्कि घरेलू कामगारों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना भी है।

(3) वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का विखंडन

महामारी के बाद, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का विखंडन तेजी से हो रहा है। पहले, ये शृंखलाएं मुख्य रूप से लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने के सिद्धांत पर आधारित थीं। लेकिन अब, आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक लचीला बनाने की कोशिश की जा रही है, जिससे लागत को कम करने और उत्पादकता को बनाए रखने के बीच संतुलन बिठाने में मुश्किलें आ सकती हैं। इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ सकता है।

दीर्घकालिक आर्थिक बदलाव (SECULAR TRENDS)

महामारी के दौरान जो आपूर्ति शृंखला (SUPPLY CHAIN) में दिक्कतें आई थीं, वे अब धीरे-धीरे कम हो रही हैं। लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसी लंबी अवधि की प्रवृत्तियाँ हैं जो अर्थव्यवस्था के काम करने की क्षमता को कमजोर कर रही हैं और खर्चों को बढ़ा रही हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती है, खासकर विकसित देशों में, उत्पादकता का लगातार गिरना

दूसरी बड़ी चुनौती है, जनसंख्या का बूढ़ा होना। दुनिया के अधिकतर देशों में, जो वैश्विक उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा हैं, वहाँ जन्म दर घट रही है और लोग ज़्यादा समय तक जी रहे हैं। इस कारण, काम करने वाले लोगों की संख्या घट रही है और कम लोग ज़्यादा बुजुर्गों की देखभाल करने को मजबूर हैं। यह स्थिति सरकारी वित्त पर दबाव डाल रही है, खासकर तब जब ब्याज दरें (INTEREST RATES) ऊँची हैं। कई विकसित देशों में उच्च रोजगार वाले क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी हो गई है, जिससे विकास रुक गया है और महंगाई बढ़ रही है, खासकर अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में।

महामारी का एक और बड़ा असर यह हुआ कि बहुत से देशों का सरकारी कर्ज (उधार) बढ़ गया। अब दुनिया भर में कई सरकारों का कर्ज उनके कुल उत्पादन (GDP) से भी अधिक हो गया है। अमेरिका में यह अनुपात 120% तक पहुँच गया है, और यूरोप में 88.6% है। कुछ देशों जैसे ग्रीस, इटली, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, और पुर्तगाल में यह और भी ज़्यादा है। चीन में यह कर्ज कम दिखता है, लेकिन अगर हम सरकारी कंपनियों का कर्ज जोड़ें, तो यह भी काफी बढ़ जाता है। महामारी के दौरान, मानव जीवन को बचाने, व्यवसायों को बंद होने से रोकने और अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए भारी मात्रा में पैसा खर्च किया गया, जिससे कर्ज बढ़ गया।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उभरते हुए देशों, जैसे चीन, की जो तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वैश्विक उत्पादन में बड़ी भूमिका निभा रही थी, अब उसकी रफ्तार धीमी हो रही है।

उभरती अर्थव्यवस्थाओं का मोड़ (THE LEWIS TURNING POINT)

यह एक ऐसा मोड़ है जब एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था में ग्रामीण और पारंपरिक क्षेत्रों से आने वाले श्रमिक शहरी और आधुनिक क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसका मतलब है कि सस्ते श्रमिकों की कमी हो जाती है, जिससे उत्पादन की लागत बढ़ने लगती है

वर्तमान चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ

आर्थिक विकास और उत्पादकता

हमारे पास ऐसी तकनीकें और कौशल हैं जो आर्थिक विकास और स्थिरता में मदद कर सकते हैं। लेकिन हमें उत्पादकता पर ध्यान देना जरूरी है। अमेरिका में 1998 से 2007 के बीच उत्पादकता की दर 1.68% थी, लेकिन 2010 से 2019 के बीच यह घटकर 0.38% हो गई। इसका मतलब है कि उत्पादन क्षमता में कमी आई है।

उत्पादकता के क्षेत्र

(1) व्यापार से जुड़े क्षेत्रों: इनमें उत्पादकता कम हो गई है। इन क्षेत्रों में कम लोगों के साथ भी अधिक उत्पादन किया जा सकता है।

(2) अन्य क्षेत्र: जिन क्षेत्रों में लोग ज्यादा काम करते हैं और जो व्यापार से जुड़े नहीं हैं, वहाँ उत्पादकता बहुत कम हो गई है।

अंतरराष्ट्रीय स्थिति

अमेरिका हाल की धीमी उत्पादकता के बावजूद अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। यूरोप में धीमी वृद्धि का एक कारण है कि वहाँ डिजिटल तकनीक का उपयोग धीमा रहा है और तकनीकी क्षेत्र अमेरिका और चीन के मुकाबले कम विकसित है।

महामारी का प्रभाव

महामारी के दौरान, कुछ समय के लिए उत्पादकता बढ़ी क्योंकि कम उत्पादकता वाले क्षेत्र बंद हो गए थे और अधिक उत्पादकता वाले क्षेत्रों में लोग घर से काम करने लगे थे। यह देखना अभी बाकी है कि यह सुधार स्थायी रहेगा या नहीं।

आपूर्ति और मांग की स्थिति

अब हम मांग की कमी से आपूर्ति की कमी की स्थिति में पहुँच गए हैं। इसका मतलब है कि विकास धीमा हो गया है, महंगाई बनी हुई है, और ब्याज दरें ऊँची हैं।

उधारी की लागत और निवेश

(1) उधारी की लागत: कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उधारी की लागत अब ऊँची रहेगी, और 2008 के वित्तीय संकट के बाद की तुलना में अधिक हो सकती है।

(2) निवेश: इसका असर निवेश पर पड़ेगा, जिससे पूंजी की लागत और मूल्यांकन पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

ब्याज दरों के पूर्वानुमान

निवेशक भविष्य में ब्याज दरों के रुझानों को लेकर असहमत हो सकते हैं और समय के साथ अपने विचार बदल सकते हैं। पिछले साल उम्मीद थी कि ब्याज दरें कई बार घटेंगी, लेकिन अब उम्मीदें बदल गई हैं और केवल एक या दो कटौती की संभावना है। भविष्य में ब्याज दरें ऊँची रह सकती हैं।

विज्ञान और तकनीक में बदलाव की लहर

आज की दुनिया में तीन बड़ी तकनीकी क्रांतियाँ हो रही हैं। पहला है डिजिटल क्रांति, जो पिछले कई सालों से चल रही है और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में हो रही नई खोजों से और तेज हो गई है। दूसरा है स्वास्थ्य और जीवन से जुड़े विज्ञान में हो रही क्रांति, और तीसरा है ऐसी तकनीकों का विकास जो साफ और टिकाऊ ऊर्जा में बदलाव ला सकती हैं

इन तीनों क्षेत्रों में बहुत सारा पैसा लगाया जा रहा है। इन तकनीकों का विकास केवल नई खोजों पर ही निर्भर नहीं है, बल्कि उन औजारों पर भी है, जिनकी कीमत कम हो रही है और जो अब ज्यादा लोगों तक पहुँच रहे हैं। जैसे, सोलर ऊर्जा की लागत पिछले कुछ सालों में काफी कम हो गई है। इसी तरह, नई-नई तकनीकें, जैसे एडवांस सेमीकंडक्टर और डीएनए की जाँच, अब आसानी से उपलब्ध हैं।

इन तकनीकों का इस्तेमाल दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में बड़े बदलाव ला सकता है। हालाँकि, हम अभी यह नहीं कह सकते कि ये बदलाव कैसे और कितने बड़े होंगे, लेकिन यह तय है कि इनके असर महत्वपूर्ण होंगे।

एआई से विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में बड़े बदलाव आ सकते हैं, जैसे जीवविज्ञान, भौतिकी और ऊर्जा के क्षेत्र में। एआई की मदद से काम करने की क्षमता (उत्पादकता) में भी बढ़ोतरी हो सकती है।

जनरेटिव एआई पहली ऐसी एआई है जो इंसान की तरह कई अलग-अलग काम कर सकती है और सिर्फ बातों के आधार पर काम का तरीका बदल सकती है। यह महंगाई के बारे में बात कर सकती है, कंप्यूटर के लिए कोड लिख सकती है, और गणित के सवाल हल कर सकती है—हालाँकि इसमें अभी भी सुधार की जरूरत है। इसकी खासियत है कि यह पैटर्न को पहचानने में बहुत अच्छी है, जिससे यह एक शक्तिशाली डिजिटल सहायक बन जाती है। इसे पूरी तरह से इंसानों की जगह लेने वाली मशीन की बजाय इंसानों की मदद करने वाली मशीन के रूप में देखना बेहतर होगा।

एआई एक ऐसी तकनीक है जिसे हर क्षेत्र में, हर काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी तकनीकें ही पूरे समाज में काम करने की क्षमता (उत्पादकता) को बढ़ा सकती हैं।

आजकल एआई का इस्तेमाल हमारे मोबाइल फोन जैसे उपकरणों में भी किया जा रहा है, और यह उन्नत (एडवांस) सेमीकंडक्टर की वजह से संभव हो पाया है।

लेकिन एआई के इन फायदों को पूरी तरह से पाने के लिए कुछ चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस तकनीक और डेटा का गलत इस्तेमाल न हो, इसके लिए सही नियम कैसे बनाए जाएं। इस पर दुनियाभर में काम हो रहा है।

दूसरी चुनौती है कि लोगों को यह समझाना कि एआई इंसानों की जगह लेने के लिए नहीं है, बल्कि उनके काम में मदद करने के लिए है। यह गलतफहमी बहुत से लोगों में है कि एआई आने से नौकरियाँ चली जाएंगी, जिससे वे चिंतित हैं।

सबसे जरूरी बात यह है कि एआई से जो भी फायदे हों, वे सभी क्षेत्रों और सभी प्रकार के कामों में पहुंचें, चाहे वह बड़ा व्यवसाय हो या छोटा। अभी बड़े-बड़े उद्योगों में एआई के लिए निवेश हो रहा है, लेकिन यह जरूरी है कि एआई के फायदे उन क्षेत्रों तक भी पहुंचें जो आमतौर पर पीछे रह जाते हैं, जैसे सरकारी काम, स्वास्थ्य सेवाएं, निर्माण और आतिथ्य क्षेत्र।

पहले के अनुभव बताते हैं कि यह फैलाव खुद-ब-खुद नहीं होता, और अगर इसे पूरी तरह बाजार पर छोड़ दिया जाए, तो इसमें असमानता आ सकती है। इसलिए, एआई की पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए, इसे सभी तक पहुंचाने की नीति, इसका फैलाव, और लोगों को नए कौशल सिखाने की नीति को मजबूत करना जरूरी है। साथ ही, एआई के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए भी कदम उठाने होंगे।

इसके अलावा, सरकार का काम यह नहीं है कि वह किसी खास उद्योग या कंपनी को बढ़ावा दे। इसके विपरीत, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना भी इस नीति का हिस्सा होना चाहिए। साथ ही, उन छोटे व्यवसायों पर भी ध्यान देने की जरूरत है जो नई तकनीकों को अपनाने में पीछे रह सकते हैं। और चूंकि एआई के साथ काम करने से नौकरियों में बदलाव आएंगे, इसलिए लोगों को नए कौशल सिखाना और उन्हें फिर से प्रशिक्षित करना भी बहुत जरूरी है।

समस्याएँ और संभावनाएँ

एआई से मिलने वाले फायदे

एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के फायदे सिर्फ महामारी के बाद की उत्पादकता और विकास की समस्याओं को सुलझाने तक ही सीमित नहीं हैं। इसका असर विज्ञान और तकनीक के कई क्षेत्रों पर पड़ेगा, जैसे कि जीवविज्ञान, भौतिकी, सामग्री विज्ञान और ऊर्जा के क्षेत्र में।

मुख्य समस्याएँ

(1) संसाधन और तकनीकी बाधाएँ

एआई के और अधिक शक्तिशाली मॉडल बनाने के लिए हमें ज्यादा कंप्यूटर शक्ति, अच्छी टीम और बढ़ती बिजली की मांग की जरूरत है। डेटा की कमी नहीं है, क्योंकि इंटरनेट पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध है। हालांकि, बड़ी कंपनियों का एआई मॉडल बनाने के लिए निजी डेटा की जरूरत होती है। लेकिन बड़े भाषा मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए आपको व्यक्तिगत डेटा की जरूरत नहीं होती है।

(2) गणना शक्ति और प्रतिस्पर्धा

दुनिया में एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए सबसे ज़्यादा शक्ति वाले सिस्टम ज्यादातर अमेरिका और चीन में हैं। इससे विज्ञान और शोध क्षेत्र को चुनौती मिलती है। इसलिए, शोधकर्ताओं और नवाचारकों के लिए अच्छी गणना सुविधाओं का विस्तार करना जरूरी है।

(3) यूरोप की समस्याएँ

यूरोप एआई के क्षेत्र में अमेरिका और चीन से पीछे रह सकता है। इसके कारण हैं: यूरोपीय संघ द्वारा मूलभूत अनुसंधान के लिए कम फंडिंग, अनुसंधान के लिए आवश्यक गणना शक्ति की कमी, और यूरोपीय अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से फायदा न उठाना। यूरोपीय पूंजी बाजार अभी भी विभाजित हैं और सेवा बाजार का एकीकरण पूरा नहीं हुआ है।

(4) भारत और चीन की स्थिति

चीन एआई के क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति है। भारत, जिसकी डिजिटल तकनीक में मजबूत जड़ें हैं, एक बड़ी और बढ़ती हुई आंतरिक बाजार है, और कुशल इंजीनियरिंग मानव संसाधन है, वह भी एक महत्वपूर्ण ताकत बनने की संभावना रखता है।

(5) उभरते बाजार

अन्य उभरते बाजार एआई तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन अगले कुछ सालों तक वे ज्यादातर अमेरिका और चीन द्वारा विकसित उन्नत एआई तकनीकों के उपभोक्ता रहेंगे।

भविष्य में बदलाव

एआई बड़े पैमाने पर बदलाव लाएगा। कुछ लोगों की नौकरियाँ स्वचालन या तेजी से उत्पादकता वृद्धि के कारण जा सकती हैं, जबकि नई नौकरियाँ भी बनेंगी। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिनके काम बदलेंगे, यह एक कठिन प्रक्रिया होगी और इसके लिए नए कौशल और संगठनात्मक बदलाव की जरूरत होगी।

नीति और विकास

अगर एआई के लाभ को पूरे अर्थव्यवस्था में फैलाने के लिए सही नीतियाँ बनाई जाएं, तो यह आर्थिक वृद्धि को तेजी से बढ़ा सकता है और उत्पादकता में सुधार ला सकता है। अगर एआई आपूर्ति-पक्ष की समस्याओं को हल करता है, तो यह ब्याज दरों और पूंजी की लागत को समय के साथ कम कर सकता है। वृद्धि के साथ-साथ, एआई युवा कामकाजी जनसंख्या को वृद्ध लोगों की मदद करने में भी सहायक हो सकता है।

निष्कर्ष

हम कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास विकास, समावेशन और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक प्रतिभा और उपकरण हैं—हमें बस इनका सही और सक्रिय तरीके से उपयोग करना होगा।


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