एआई की ताकत: लार्ज लैंग्वेज मॉडल

एआई की ताकत: लार्ज लैंग्वेज मॉडल

लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एल.एल.एम.) ऐसे विशेष एआई प्रोग्राम हैं जिन्हें बहुत सारे लिखे हुए डेटा को समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए बनाया गया है। ये प्रोग्राम मशीन लर्निंग‘ का इस्तेमाल करके सीखते हैं, ताकि वे मानवीय भाषा के पैटर्न को समझ सकें। सीखने के बाद यह प्रोग्राम, हमारे द्वारा लिखे हुए सवालों के जवाब दे सकता हैं और नये टेक्स्ट भी बना सकता हैं।

एल.एल.एम. कई तरह के कामों में इस्तेमाल हो रही हैं, जैसे,

  • यह ऐसी भाषा लिख सकता हैं जो बिल्कुल इंसानों द्वारा लिखी हुई लगे। इससे उनका इस्तेमाल कई तरह के कामों के लिए किया जा सकता है।
  • यह एक भाषा से दूसरी भाषा में आसानी से और सही तरीके से अनुवाद कर सकते हैं।
  • यह नई चीज़ें लिख सकता हैं, जैसे कि कहानियां, कविताएं, प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज के कोड, स्क्रिप्ट, गाने, ईमेल, या लेटर।
  • यह आपके द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देने की पूरी कोशिश करता है, फिर चाहे वो आसान हो, मुश्किल हो, या थोड़ा अजीब ही क्यों न हो।

लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एल.एल.एम.): संक्षिप्त पृष्ठभूमि और विकास

1950 का दशक से 1990 का दशक तक:

शुरुआत में, भाषा के सख्त नियमों को तय करने की कोशिश की गई थी। मकसद ये था कि कंप्यूटर इन नियमों का इस्तेमाल करके एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद जैसे कार्य कर सके। लेकिन, ये तरीका सिर्फ उन आसान कामों के लिए ही कारगर था जिनके बारे में कंप्यूटर को पहले से जानकारी हो।

1990 का दशक:

लैंग्वेज मॉडल अब आंकड़ों पर आधारित बनने लगे. यानी, कंप्यूटर बड़ी मात्रा में लिखे हुए टेक्स्ट का विश्लेषण करने लगा कि मानवीय भाषा कैसे काम करती है। पर, उस समय कंप्यूटर की क्षमता कम होने के कारण बड़े प्रोजेक्ट बनाना मुश्किल था। 

2000 का दशक:

कंप्यूटर को सिखाने के नए तरीकों (मशीन लर्निंग) से लैंग्वेज मॉडल और जटिल होते गए।  साथ ही, इंटरनेट के चलन से उन्हें सीखने के लिए बहुत ज्यादा लिखा हुआ सामान मिलने लगा।

2012 का दशक:

कंप्यूटर को सिखाने के और बेहतर तरीकों (डीप लर्निंग) और पहले से कहीं ज्यादा डेटा की मदद से एक नया लैंग्वेज मॉडल तैयार किया गया। इस मॉडल को जीपीटी (जेनरेटिव प्रीट्रेंड ट्रांसफॉर्मर) कहते हैं। 

2018 का दशक:

गूगल ने एक नया लैंग्वेज मॉडल बनाया जिसका नाम है बी..आर.टी. (बाईडारेक्शनल एनकोडर रिप्रेजेंटेशन्स फ्रॉम ट्रांसफॉर्मर्स)। ये लैंग्वेज मॉडल बनाने के तरीके में बड़ा बदलाव था और इसी से भविष्य के लार्ज लैंग्वेज मॉडल बनने का रास्ता बना। 

2020 का दशक:

ओपनएआई ने जीपीटी-3 जारी किया, जो अब तक का सबसे बड़ा लैंग्वेज मॉडल है। इसमें 175 बिलियन पैरामीटर हैं और इसने भाषा से जुड़े कामों के लिए एक नया बेहतर तरीका दिखाया है। 

2022 का दशक:

चैटजीपीटी लॉन्च हुआ। इसने जीपीटी-3 जैसे लैंग्वेज मॉडलों को एक ऐसी सेवा में बदल दिया जिसे लोग आसानी से वेबसाइट के जरिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एल.एल.एम.) और जनरेटिव एआई के बारे में लोगों को बहुत जानकारी मिली। 

2023 का दशक:

ओपन सोर्सलार्ज लैंग्वेज मॉडल (एल.एल.एम.) तेजी से तरक्की करने लगा। ‘डॉली 2.0‘, ‘लामा‘, ‘अल्पाका‘ और ‘विचुना‘ जैसे लैंग्वेज मॉडल लॉन्च किए गए, और इनके नतीजे काफी अच्छे रहे। जीपीटी-4 भी जारी किया गया, जिसने पैरामीटर के आकार और कार्यक्षमता दोनों के लिए एक नया बेहतर तरीका दिखाया।

लैंग्वेज मॉडल क्या हैं और वे कैसे काम करती हैं?

लार्ज लैंग्वेज मॉडल एक एडवांस आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस सिस्टम है। इसे अपनी भाषा में टाइप कर कुछ इनपुट देने पर यह टेक्स्ट जनरेट कर जवाब देता है। यह सिस्टम बहुत सारे टेक्स्ट को पढ़कर समझने की कोशिश करता है। इस जानकारी से वे अपने अंदर एक खास ‘स्ट्रक्चर’ बना लेता है, जिसे हम ‘नेचुरल लैंग्वेज डाटा सेट’ कहते हैं। यह स्ट्रक्चर भाषा के नियमों और शब्दों के बीच के संबंधों को समझकर बनता है। जैसे-जैसे यह सिस्टम और अधिक डेटा को पढ़ता है, यह स्ट्रक्चर और मजबूत होता जाता है। जब आप लार्ज लैंग्वेज मॉडल को कोई सवाल पूछते हैं, तो यह पहले आपके सवाल को समझने की कोशिश करता है। इसके लिए यह आपके सवाल के शब्दों को अलग-अलग करता है और उनका अर्थ समझता है। फिर यह अपने अंदर बने स्ट्रक्चर का इस्तेमाल करके आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करता है। यह जवाब उस भाषा में देने की कोशिश करता है जिसमें आपने सवाल पूछा था। यह जवाब इस तरह से देने की कोशिश करता है कि वह सटीक, प्रासंगिक और व्याकरणिक रूप से सही हो।

ये मॉडल कई सालों से हैं, फिर अचानक चर्चा में क्यों आए?

कुछ हालिया तरक्की की वजह से जनरेटिव एआई और लार्ज लैंग्वेज मॉडल सुर्खियों में आ गए हैं:

  • पिछले कुछ सालों में, इन मॉडल को सिखाने के तरीकों में काफी तरक्की हुई है, जिससे इनके काम करने का तरीका बहुत बेहतर हो गया है। खासतौर पर, इन्हें सिखाने के तरीके में सीधे लोगों की राय शामिल करने से इनके जवाब देने की क्षमता में बहुत सुधार हुआ है।
  • चैटजीपीटी के आने से पहले ये बेहतर लार्ज लैंग्वेज मॉडल सिर्फ रिसर्च करने वालों और बहुत जानकार लोगों के लिए ही उपलब्ध थीं। उन्हें चलाने के लिए बहुत सारे संसाधन और गहरा टेक्निकल ज्ञान ज़रूरी था। लेकिन, चैटजीपीटी के आने से सब बदल गया। अब इंटरनेट वाले कोई भी व्यक्ति एक साधारण वेबसाइट के ज़रिए इनसे बातचीत कर सकता है। इसी वजह से इन लार्ज लैंग्वेज मॉडल की तरक्की पर सबका ध्यान गया।
  • पहले, कम दमदार कंप्यूटरों की वजह से इन मॉडलों को सिखाना मुश्किल था। पर अब ज्यादा ताकतवर कंप्यूटर (ग्राफ़िक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स) और बेहतर डाटा प्रोसेसिंग टेक्निक्स की वजह से वैज्ञानिक कहीं ज्यादा बड़े मॉडल बना सकते हैं। इससे इन लैंग्वेज मॉडल का काम करने का तरीका और बेहतर हो गया है।
  • डेटा इकट्ठा करने और उसका विश्लेषण करने के बेहतर तरीके आने से इन मॉडल का प्रदर्शन बहुत बेहतर हो गया है।

तो कंपनियां इन बड़ी भाषा मॉडल का इस्तेमाल किस लिए कर रही हैं? आइए देखें इनके इस्तेमाल के कुछ उदाहरण:

चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट:

लार्ज लैंग्वेज मॉडल का इस्तेमाल कंपनियां कई तरह से कर सकती हैं, जिनमें से एक है ‘चैटबॉट‘ और ‘वर्चुअल असिस्टेंट‘ बनाना। इनकी मदद से कंपनियां ग्राहकों को सहायता दे सकती हैं, जैसे किसी समस्या का हल बताना या यूजर के सवालों के जवाब देना, आदि।

कोड जनरेशन और डिबगिंग:

लार्ज लैंग्वेज मॉडल को ढेर सारे कोड के उदाहरणों से सीखाया जा सकता है। फिर इन्हें हमारी भाषा में लिखकर कोई सवाल पूछें तो ये जवाब में कोड के उपयोगी टुकड़े दे सकते हैं। सही तरीके से इस्तेमाल करने पर, इन्हें कंपनी के दस्तावेजों जैसे जानकारी के साथ जोड़ा जा सकता है। इससे ये और भी सटीक जवाब दे पाएंगे।

सेंटीमेन्ट एनालिसिस (भावना विश्लेषण):

ग्राहकों की राय जानना कई बार मुश्किल होता है। लेकिन, लार्ज लैंग्वेज मॉडल किसी लिखे हुए टेक्स्ट को पढ़कर उसमें छिपी भावनाओं और राय का अंदाजा लगा सकती हैं। इससे कंपनियों को ग्राहक संतुष्टि बढ़ाने के लिए ज़रूरी डेटा और फीडबैक जुटाने में मदद मिलती है।

टेक्स्ट क्लासिफिकेशन और क्लस्टरिंग:

बड़ी मात्रा में लिखे हुए डेटा को अलग-अलग वर्गों में बाँटने और उसे क्रम में लगाने से उसमें मौजूद मुख्य विषयों और रुझानों को पहचानना आसान हो जाता है। इससे कंपनियों को सही फैसले लेने और बेहतर रणनीति बनाने में मदद मिलती है।

लैंग्वेज ट्रांसलेशन (भाषा अनुवाद):

आप अपने वेब पेजों को उचित लार्ज लैंग्वेज मॉडल के माध्यम से फीड करके उन्हें विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं। इससे आपका लिखा हुआ कॉन्टेंट सामान दुनियाभर के लोगों तक पहुंच सकता है।  जैसे जैसे और अधिक लार्ज लैंग्वेज मॉडल को अन्य भाषाओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है, वैसे ही अनुवाद की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार होता जा रहा है। 

समरी एंड पाराफ्रसिंग:

बड़ी बैठकों या ग्राहक से हुई पूरी बातचीत को संक्षेप में लिखा जा सकता है ताकि दूसरे लोग भी आसानी से समझ सकें। लार्ज लैंग्वेज मॉडल ढेर सारे टेक्स्ट को पढ़कर उसका समरी (सार) निकाल सकती हैं, यानी सिर्फ सबसे महत्वपूर्ण जानकारी दे सकती हैं।

कॉन्टेंट जनरेशन:

लार्ज लैंग्वेज मॉडल हमारे लेखन प्रक्रिया को आसान बना सकती हैं। हम इन्हें एक विस्तृत रूपरेखा बनाने के लिए कह सकते हैं। इसके बाद, हम उसी रूपरेखा पर और जानकारी देते हुए इन्हें लिखने के लिए कह सकते हैं। ये हमारे लिए पहला मसौदा तैयार कर सकती हैं, जिसे हम बाद में और बेहतर बना सकते हैं। हम इनका उपयोग नए विचारों पर सोच-विचार करने और प्रेरणा लेने के लिए भी कर सकते हैं।

लार्ज लैंग्वेज मॉडल का इस्तेमाल:

आप अपनी ज़रूरत के हिसाब से इन मॉडलों का इस्तेमाल दो तरीकों से कर सकते हैं। हालाँकि, इन दोनों में थोड़ा बहुत ओवरलैप होता है। आइए दोनों तरीकों के फायदे-नुकसान और उनके इस्तेमाल के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं। 

प्रोप्राइटरी (स्वामित्व) वाली सेवाएं:

चैटजीपीटी पहली ऐसी सेवा थी जिसने लार्ज लैंग्वेज मॉडल को आम लोगों तक पहुंचाया। यह एक तरह का इंटरफ़ेस है जहां यूजर अपनी लिखी हुई जानकारी दे सकते हैं और जवाब में मॉडल (जीपीटी-3.5, जीपीटी-4 आदि) कुछ लिखकर देता है। ये मॉडल बहुत बड़े डेटासेट पर सीखते हैं, इसलिए इनके जवाब काफी जटिल और सटीक हो सकते हैं। ये प्रोग्रामिंग लैंग्वेज कोड जनरेशन जैसे टेक्निकल कामों के साथ-साथ रचनात्मक चीजें भी कर सकते हैं, जैसे किसी खास शैली में कविता लिखना। 

ओपन सोर्स मॉडल:

लार्ज लैंग्वेज मॉडल को इस्तेमाल करने का दूसरा तरीका ‘ओपन सोर्स मॉडल’ का सहारा लेना है। पिछले कुछ सालों में ओपन सोर्स समुदाय में भी काफी तेजी से विकास हुआ है। ‘हगिंग फेस’ जैसे समुदायों में हजारों की संख्या में मॉडल उपलब्ध हैं जिन्हें अलग-अलग लोगों ने बनाया है। ये मॉडल कई तरह के कामों में मदद कर सकते हैं, जैसे टेक्स्ट जेनरेशन, समरी, आदि। हालांकि ओपन सोर्स मॉडल तेजी से तरक्की कर रहे हैं और प्रोप्राइटरी मॉडल जैसा ही अच्छा प्रदर्शन करने लगे हैं, फिर भी अभी भी ये जीपीटी-4 जैसे मॉडल जितना अच्छा काम नहीं कर पाते हैं। 

लेकिन, इन सेवाओं की एक दिक्कत है – इन्हें चलाने में बहुत अधिक कंप्यूटर क्षमता की ज़रूरत होती है। इन्हें बनाने में भी बहुत खर्च आता है (ओपनएआई ने बताया कि जीपीटी-4 को बनाने में $100 मिलियन डॉलर से ज्यादा का खर्च आया)। इस वजह से ये बड़े मॉडल शायद हमेशा बड़ी कंपनियों के ही नियंत्रण में रहेंगे। साथ ही, इनका इस्तेमाल करने के लिए आपको अपना डेटा उनकी सर्वर पर भेजना होगा। इससे डेटा सुरक्षा की चिंता पैदा होती है।  साथ ही, ये ‘ब्लैक बॉक्स’ मॉडल होते हैं, जिनके सीखने के तरीके और सीमाओं को आप नियंत्रित नहीं कर सकते। आखिर में, इन्हें चलाने में बहुत खर्च लगता है, इसलिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए ये उपयुक्त होंगे, ऐसा कहना अभी मुश्किल है।


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