ओपन बुक एग्जाम (ओबीई): किताबें खोलकर परीक्षा, फायदे और नुकसान!
भारत सरकार ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी 2020) के तहत शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा देकर भारत को दुनिया का रिसर्च हब बनाने में जुटी है। इसके लिए, 4 साल की ग्रेजुएशन डिग्री की शुरुआत की गई है, जिसमें चौथा साल ‘ग्रेजुएशन रिसर्च’ के लिए समर्पित होगा। इसके अलावा, 2023 में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) स्थापित किया गया है, जिसका 5 साल (2023-28) के लिए कुल बजट 50000 करोड़ रुपये है। एनआरएफ रिसर्च प्रोजेक्ट को धन मुहैया कराएगा और युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करेगा।
भारत में रिसर्च को लेकर मुख्य चुनौती
अनुभवहीनता: ज्यादातर छात्र पीएचडी शुरू करने से बाद ही रिसर्च करने का अनुभव कर पाते है।
कम रूचि: 2019-2020 के ‘आल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन’ के अनुसार, भारत में केवल 0.5% छात्रों ने पीएचडी में प्रवेश लिया, जो कुल छात्र नामांकन का मात्र 202550 (0.5%) है।
समाधान
छात्रों के मन में कम उम्र से ही रिसर्च का बीज बोने का प्रयास करना होगा। इस काम को करने में ओपन बुक एग्जाम सिस्टम मदद कर सकता है।
सीबीएसई की पहल
सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) क्लास 9 से 12 के छात्रों के लिए एक नया प्रयोग शुरू करने जा रहा है। कुछ चुनिंदा स्कूलों में नवंबर-दिसंबर के दौरान ‘ओपन बुक एग्जाम’ ली जाएंगी, जहां छात्र परीक्षा के दौरान अपनी किताबें और नोट्स देखकर उत्तर दे सकेंगे।
(1) क्लास 9 और 10 में इंग्लिश, मैथ, और साइंस के लिए।
(2) क्लास 11 और 12 में इंग्लिश, मैथ, और बायोलॉजी के लिए।
ओबीई सिस्टम लागु होने पर क्या सबसे ज्यादा जरूरी होगा?
(1) सबसे ज्यादा जरूरी होगा की स्कूल टीचर्स ज्यादा मेहनत कर अपने छात्रों के सब्जेक्ट-अंडरस्टैंडिंग, प्रॉब्लम-सॉल्विंग एबिलिटी, और ऐनलिटिक होने पर ध्यान दे। साथ ही, सीबीएसई को छात्रों के ज्ञान को पूरी तरह से परखने के लिए कुएस्शन-पेपर्स में सवालों को सीधे-सीधे न पूछकर नए तरीके से पूछना होगा, ताकि छात्र अपना ज्ञान पूरी तरह से दिखा सकें।
उदाहरण के लिए,
सीबीएसई के मैथ सब्जेक्ट के क्लास 11 और 12 में ‘प्रोबेबिलिटी’ पढ़ाया जाता है। ओबीई के तहत ‘प्रोबेबिलिटी’ के आसान सवालों को कुछ इस प्रकार से पूछा जा सकता है।
मॉडल सवाल
वी हैव अ पॉपुलेशन ऑफ साइज N. लेट p बी द इंडीपेन्डेन्ट प्रोबेबिलिटी ऑफ़ अ पर्सन इन द पॉपुलेशन डेवलपिंग अ डिजीज। आंसर द फोल्लोविंग क्वेस्चन इन टर्म्स ऑफ N एंड p. (1 x 4 = 4 मार्क्स)
(ए) व्हाट इज़ दी प्रोबेबिलिटी दैट अ पर्सन इन द पॉपुलेशन नॉट डेवलपिंग द डिजीज?
(बी) इफ N = 2, व्हाट इज़ दी प्रोबेबिलिटी दैट नो वन डेवेलोप्स द डिजीज? इफ योर आंसर इन्वॉल्व N, रिप्लेस इट बाय द नम्बर 2.
(सी) फॉर अ जनरल साइज N, व्हाट इज़ दी प्रोबेबिलिटी दैट नो वन डेवेलोप्स द डिजीज?
(डी) व्हाट इज़ दी प्रोबेबिलिटी दैट, फॉर अ जनरल साइज N, ऐट लीस्ट वन पर्सन डेवेलोप्स द डिजीज?
(2) अगर ओबीई सिस्टम लागू होता है तो कुछ या कई छात्रों को लग सकता है कि ‘अब ज्यादा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है’। स्कूल मैनेजमेंट, टीचर्स और पेरेंट्स को यह सुनिचित करना होगा की छात्रों की तैयारी कम न रह जाये। छात्रों का बड़े पैमाने पर काउंसलिंग करने की जरूरत पड़ सकती है।
(3) सीबीएसई को बहुत ध्यान देना होगा ताकि एग्जामिनर छात्रों के आंसर कॉपी को काफी ज्यादा ध्यान देकर जांचे। ऐसा न होने पर गलत मार्किंग की सम्भावना प्रबल रूप से हो सकता है।
(4) यदि ओबीई सिस्टम लागू होता है, तो एनसीईआरटी को वर्तमान में स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली कई किताबों को अपग्रेड करना पड़ सकता है क्योंकि अभी वो सभी ओबीई के अनुरूप नहीं हैं।
ओबीई सिस्टम पर हो चुके रिसर्च के नतीजे
ईआरआईसी (एजुकेशन रिसोर्सेज इनफार्मेशन सेन्टर) अमेरिका सरकार के शिक्षा विभाग का एक कार्यक्रम है। यह शिक्षा से जुड़े रिसर्च का एक बड़ा ऑनलाइन संग्रह है। ईआरआईसी पर ‘दी जर्नल ऑफ़ इफेक्टिव टीचिंग’ द्वारा प्रकाशित एक एक रिसर्च पेपर के अनुसार,
संभावित फायदे
(1) ओबीई सिस्टम एग्जाम-फियर कम कर सकती हैं और रटने के बजाय नॉलेज डेवलपमेंट में मदद दे सकती हैं।
(2) ओबीई के कारण छात्र कई स्रोतों से पढ़ते हैं और सब्जेक्ट को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं; छात्र खुद से सीखते हैं और जानकारी खोजते हैं, जो एक्टिव लर्निंग को बढ़ावा देता है।
(3) ओबीई छात्रों को सब्जेक्ट से रिलेटेड एनालिटिकल-थॉट का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है। ओबीई खुद में ही सीखने का एक तरीका हो सकता है।
(4) अधिकतर छात्र क्लोज्ड-बुक एग्जाम (सीबीई) की तुलना में ओबीई के लिए तैयारी करते समय अपनी पाठ्यपुस्तकों को अधिक महत्व देते है और उसका अधिक बार और अधिक व्यापक रूप से उपयोग करते हैं।
(5) आज के बदलते कार्यक्षेत्र में, निर्णय लेने का काम ओबीई जैसा ही है; अच्छे फैसले लेने के लिए मैनेजर्स को याद किए गए ज्ञान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
(6) कई संस्थानों को लगता है कि ओबीई छात्रों को वास्तविक दुनिया के लिए बेहतर तैयार कर सकती है। कई छात्र पायलट, प्रोग्राम मैनेजर या एकाउंटेंट जैसे पदों पर काम करते हैं। इन सभी पदों पर काम करने के लिए सीखने से ज्यादा जानकारी तक पहुंचना और उसका इस्तेमाल करना जरूरी होता है।
(7) ओबीई से (चाहे वे कंप्यूटर आधारित हों या पेपर पर हों), टीचर्स को छात्रों के सीखने का बेहतर आंकलन करने में मदद मिल सकता है।
(8) ओबीई में छात्र जानकारी को देखकर सवालों के जवाब दे सकते हैं, जिससे याददाश्त के भरोसे जवाब देने से ज्यादा सटीक जवाब मिल सकते हैं; हालांकि, यह पूरी तरह से साबित नहीं हुआ है।
संभावित नुकसान
(1) ओबीई में कुछ छात्र जवाब ढूंढने में ज्यादा समय लगाते हैं और कम तैयारी करते हैं। इसके अलावा, ओबीई से लॉन्ग-टर्म मेमोरी पर भी असर पड़ सकता है।
(2) एग्जाम सिस्टम बदलने से छात्रों का प्रदर्शन भी बदलता है। कुछ स्टडी में पाया गया कि लगातार ओबीई देने वाले छात्रों के फाइनल में सीबीई होने पर परीक्षा में अधिकतर छात्रों को कम अंक आए।
(3) कुछ स्टडी में क्रिटिकल थिंकिंग पर आधारित ओबीई और सीबीई में छात्रों के प्रदर्शन की तुलना की गई थी। नतीजा ये निकला कि ओबीई या सीबीई से अंकों में कोई खास अंतर नहीं आता।
(4) परीक्षाएं सिर्फ सीखने का आंकलन करने से ज्यादा फायदेमंद हो सकती हैं। अच्छी परीक्षाएं सीखने को मजबूत बना सकती हैं और चीजों को लंबे समय तक याद रखने में मदद कर सकती हैं। इसलिए, सवाल यह नहीं है कि परीक्षाएं फायदेमंद हैं या नहीं, बल्कि यह है कि उन्हें कैसे लिया जाए। कुछ रिसर्च बताते हैं कि ओबीई में छात्र भले ही अच्छा स्कोर कर लें, लेकिन उन्हें लंबे समय तक चीजें याद नहीं रहतीं।
(5) ओबीई होने पर छात्रों में क्लास में कम आने की प्रवर्ति बढ़ती है, साथ ही वे पैरेंट, टीचर, और फ्रेंड से भी कम मदद लेते हैं।
(6) ओबीई की उम्मीद छात्रों की पढ़ाई की प्रेरणा को कम कर सकती है।
(7) ओबीई छात्रों को जवाब ढूंढने में मदद करती है, लेकिन छात्र हमेशा सही उत्तर नहीं देता।
भारत में ओबीई सिस्टम लागू होने पर स्कूल, कोचिंग, और बुक पब्लिकेशन इंडस्ट्री पर व्यापक असर हो सकता है।
भारत में कोचिंग संस्थानों का बढ़ता प्रभाव और कम वेतन के कारण अधिकतर स्कूलों में अच्छे शिक्षकों की कमी है। इस वजह से, कोचिंग इंडस्ट्री का बोलबाला है और इसका बाजार मूल्य 58088 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। ओपन बुक एग्जाम सिस्टम के लागू होने से छात्रों को ऐनलिटिक और प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल्स की आवश्यकता होगी, जिससे स्कूलों को अभी की तुलना में काफी बेहतर क्वालिफिकेशन वाले टीचर्स की जरूरत पड़ेगी और इस मुख्य कारण से स्कूल टीचिंग सेक्टर में ऐसे योग्य लोगों का फिर से आकर्षण बढ़ेगा। यदि ओबीई सिस्टम लागू होता है, तो भारत में कई प्राइवेट बुक पब्लिशिंग कंपनियों को भी नये सिरे से ओबीई अनुरूप स्कूल की किताबें छापनी पड़ सकती है।
बेहतर विकल्प क्या हो सकता है?
ओपन और क्लोज्ड बुक एग्जाम सिस्टम के फायदे और नुकसान दोनों हैं। रिसर्च से पता चलता है कि दोनों का मिश्रण भारत में स्कूल और कॉलेज स्तर पर परीक्षाओं में अच्छे प्रदर्शन और सीखने को बढ़ावा देने के लिए बेहतर हो सकता है।
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