डिजिटल युग में पढ़ाई:
यूनिसेफ़ के डेटा के अनुसार, दुनियाभर में, एक तिहाई से ज़्यादा यानी 33% बच्चों और युवाओं के पास घर पर इंटरनेट है – शहर के 41%, जबकि गाँव में लगभग 25%। मतलब, छात्रों द्वारा स्क्रीन के जरिए पढाई करने की संभावना बहुत बड़ी है।
पढ़ने का सबसे अच्छा तरीका स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ चीजें स्क्रीन (मोबाइल, टेबलेट, या लैपटॉप) से जल्दी सीखी जा सकती हैं, लेकिन किताबों से गहरा ज्ञान और समझ मिलती है। पढ़ाई में कंप्यूटर और किताबें दोनों महत्वपूर्ण हैं। रिसर्च से पता चलता है कि छात्रों को किसी विषय को गहराई से सीखना है, तो किताबें ही बेहतर हैं। जब छात्र स्क्रीन पर पढ़ते हैं, तो वे उतना नहीं समझ पाते जितना वे प्रिंटेड-बुक से पढ़ कर समझ पाते हैं। कई छात्र स्क्रीन पर पढ़ने के कारण अपनी समझ की कमी को महसूस नहीं करते हैं। इसलिए, किताबों से पढ़ना न छोड़ें।
रिसर्च जनरल ‘साइंस-डिरेक्ट‘ में प्रकाशित एक साइअन्टिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार, स्पेन और इज़राइल के रीसर्चर ने 54 रिसर्च-स्टडी की तुलना करके डिजिटल और प्रिंटेड-बुक से पढ़ने पर गहन अध्ययन किया। उनके 2018 के अध्ययन में 171,000 से अधिक पाठकों ने भाग लिया। उन्होंने पाया कि कुल मिलाकर, जब छात्र प्रिंटेड-बुक से पढ़ते हैं, तो उन्हे ज्यादा अच्छे से समझ आता है। इसका मतलब ये नहीं है कि स्क्रीन पर पढ़ना अच्छा नहीं होता है।
छात्रों को लगता है कि वे ऑनलाइन पढ़ने से अधिक सीखते हैं, लेकिन रिसर्च में पता चला है कि वे प्रिंट से पढ़ने की तुलना में कम सीखते हैं। इसका कारण यह है कि पढ़ना एक नेचुरल प्रोसेस नहीं होता है। हम आसपास के लोगों को सुनकर बोलना सीखते हैं, जो एक सहज और नेचुरल सा प्रोसेस है। लेकिन, पढ़ने को सीखना मेहनत का काम है, इसकी वजह ये है कि दिमाग में सिर्फ पढाई करने के लिए सेल्स का कोई स्पेशल नेटवर्क नहीं होता है।
दिमाग टेक्स्ट को समझने के लिए उन नेटवर्कों का इस्तेमाल करता है जो पहले दूसरे कामों के लिए विकसित हुए थे। उदाहरण के लिए, दिमाग में, चेहरे पहचानने वाला हिस्सा, अक्षरों को पहचानने में मदद करता है। ये वैसा ही है जैसे आप किसी औजार को नए काम के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। पढ़ाई करते समय भी दिमाग यही करता है।
ब्रेन के फ्लेक्सिएबले होने के कारण ही हम नए काम सीख पाते हैं। पर, फ्लेक्सिएबले होने के कारण ही कई बार ब्रेन को अलग-अलग टेक्स्ट पढ़ने में दिक्कत हो सकता है। ऑनलाइन टेक्स्ट को पढ़ते समय, ब्रेन प्रिंटेड-बुक से पढ़ने के मुकाबले सेल्स के बीच अलग तरह के न्यूरॉन-कनेक्शन बनाता है। मतलब, ब्रेन दोनों तरह के टेक्स्ट को समझने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करता है। यह अंतर कई कारकों के कारण हो सकता है, जिनमें स्क्रीन का प्रकाश, टेक्स्ट का आकार और फ़ॉन्ट, आदि। मतलब, टूल एक ही है लकिन इस्तेमाल दो अलग तरीके से हो रहा है।
ब्रेन के फ्लेक्सिएबले होने के कारण, स्क्रीन पर पढ़ते समय दिमाग फटाफट पढ़ने की मोड में चला जाता है। यह छोटे मैसेज और सोशल मीडिया के लिए तो ठीक है, लेकिन लंबे टॉपिक या किताबें पढ़ने के लिए यह तेज़ी नुकसानदेह हो सकती है। स्क्रीन पर पढ़ते समय, दिमाग प्रिंटेड-बुक से पढ़ने की तुलना में तेज़ी से पढ़ता है। यह इसलिए है क्योंकि स्क्रीन पर पाठ को जल्दी से स्क्रोल किया जा सकता है। नतीजतन, दिमाग को प्रत्येक शब्द पर ध्यान केंद्रित करने और इसे समझने के लिए कम समय मिलता है। लंबे टॉपिक या किताबें पढ़ने के लिए यह तेज़ी नुकसानदेह हो सकती है क्योंकि यह समझ और याददाश्त को कम कर सकती है। जब हम जल्दी पढ़ते हैं, तो हम अक्सर महत्वपूर्ण जानकारी को याद नहीं रख पाते हैं। प्रिंटेड-बुक से पढ़ते समय हमारा दिमाग ‘गहरे मोड’ में जाता है, ध्यान केंद्रित करता है और सक्रिय रूप से जानकारी को लेता है। यह प्रोसेस कई सब्जेक्ट्स जैसे फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ, बायोलॉजी आदि को समझने और ज्ञान को बनाए रखने के लिए बेहतर है।
ऑनलाइन, हम ज़्यादातर टेक्स्ट-मैसेज और सोशल-मीडिया पोस्ट पढ़ते हैं। ये आसानी से समझ आते हैं, इसलिए हम तेज़ पढ़ते हैं। हमारी आँखें पन्नों और शब्दों को प्रिंटेड-बुक पर पढ़ने की तुलना में तेज़ी से स्कैन करती हैं। लेकिन, जब बात फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ, बायोलॉजी जैसे सब्जेक्ट्स की आती है, तो तेज़ पढ़ने से छात्र सभी कॉन्सेप्ट्स को ठीक से नहीं समझ पाते। कई बार, ये तेज़ी से पढ़ना, स्क्रीन पर पढ़ने के साथ जुड़ी एक आदत बन जाती है। सोचिए कि छात्र जब अपने स्कूल के असाइनमेंट को पढ़ने के लिए फोन उठाता है, तो उसका ब्रेन उसी नेटवर्क को चालू कर सकता है जो वो व्हाट्सप्प या इंस्टाग्राम पोस्ट्स पर तेज़ी से स्किम करने के लिए इस्तेमाल करता है। इससे उसे असाइनमेंट को समझने में मुश्किल हो सकती है।
इसके अलावा, स्क्रीन पर पढ़ते समय कई तरह की चीज़ें ध्यान भटकाने वाली होती हैं, जैसे टेक्स्ट-मैसेज, ईमेल, विज्ञापन, अपडेट्स आदि। टॉपिक कि लंबाई भी मायने रखती है। छोटे टॉपिक्स के लिए, स्क्रीन पर पढ़ना और प्रिंट पर पढ़ना, उसको समझने के मामले में एक जैसा ही है। लेकिन जब टॉपिक 500 शब्दों से अधिक लंबे होते हैं, तो छात्र प्रिंटेड बुक से अधिक सीखते हैं। कहानी जैसी चीज़ें पढ़ते वक्त, छात्र टैबलेट और प्रिंटेड बुक दोनों से लगभग एक समान ही समझते हैं।
स्कूल में अच्छा करना सिर्फ टैबलेट बंद करके किताब उठाने से नहीं होता। स्क्रीन पर पढ़ने के भी कई अच्छे कारण हैं जो खास कर कोरोना महामारी के दौरान देखा गया था। स्क्रीन पर पढ़ने का फायदा मेहनत पर निर्भर करता है। प्रिंट और डिजिटल दोनों फायदेमंद हैं, लेकिन अलग-अलग स्थितियों में।
एक्सपर्ट्स मानते है की डिजिटल पढ़ना भविष्य का ज़रिया है, इसलिए इसका सही इस्तेमाल करना ज़रूरी है। स्क्रीन पर पढ़ते समय ध्यान से पढ़ने के लिए धीमा होना चाहिए, ज़रूरी जानकारी पर ध्यान दें। पढ़ने से पहले डिवाइस का नोटिफिकेशन बंद करें, एकाग्रता बढ़ाने के लिए थोड़ी तैयारी करें, जैसे यह तय करना कि आप क्या पढ़ने वाले हैं और उससे क्या सीखना चाहते हैं।
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