भारत में इलेक्ट्रिक बसों को अपनाने में आ रही हैं ये बाधाएं, जानिए सरकार क्या कर रही है इनको दूर करने के लिए, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की स्टडी:
भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक बसों को तेजी से अपनाने के लिए दो योजनाएं शुरू की हुई हैं, लेकिन इन योजनाओं को बड़े पैमाने पर अपनाने में कुछ रुकावटें हैं।
पहली योजना: थोक खरीद मॉडल
इस योजना को सरकारी कंपनी ‘कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल)’ द्वारा चलाया जा रहा है। इस मॉडल के तहत, एक साथ ज्यादा इलेक्ट्रिक बसें खरीदने से कम दाम में खरीदी जा सकेंगी। इसके लिए सीईएसएल कई राज्यों के मिलकर बस खरीदने के ठेके को इकट्ठा करती है। इस मॉडल का लक्ष्य देश में पहले से ही सफल रहे कुछ कार्यक्रमों की तरह ही फायदेमंद होना है। उदाहरण के लिए, सीईएसएल की मूल कंपनी, ‘एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड’ ने इसी तरह का थोक खरीद मॉडल इस्तेमाल करके कम खर्चे में अच्छी लाइटें और पर्यावरण के अनुकूल कूलिंग सिस्टम लगवाए थे।
दूसरी योजना: ‘पे ऐज़ यू गो’ मॉडल
भले ही थोक खरीद से कुछ बचत हो जाए, फिर भी लोकल ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के लिए इलेक्ट्रिक बसें बहुत महंगी साबित होती है। इसलिए, भारत सरकार ने ‘पे ऐज़ यू गो‘ लीजिंग मॉडल तैयार किया है, जिसे ‘ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्टिंग‘ कहा जाता है। इस मॉडल में, इलेक्ट्रिक बस बनाने वाली कंपनी प्रति किलोमीटर शुल्क लेकर सार्वजनिक परिवहन निगम को बस लीज पर देती है। इससे बस चलाने वाली कंपनियों पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कम हो जाता है।
इन योजनाओं में आ रही हैं ये बाधाएं
स्टडी के अनुसार, इन दो सरकारी योजनाओं को कुछ सफलता मिली है और अब तक लगभग 20000 इलेक्ट्रिक बसों के टेंडर निकाले जा चुके हैं। हालांकि, इस योजना को बड़े पैमाने पर अपनाने में कुछ रुकावटें हैं:
(1) बस बनाने वाली कंपनियों की ज्यादा भागीदारी न होना:
‘पे ऐज़ यू गो’ लीजिंग मॉडल में बसें बनाने वाली कंपनी ही बसों की मालिक रहती है। इस मॉडल में बसें बिकती नहीं हैं, जिससे निर्माता कंपनियों को वो जरूरी पूंजी नहीं मिल पाती है जिसकी उन्हें बसों का उत्पादन बढ़ाने और सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण की मांग को पूरा करने के लिए ज़रूरत होती है। इसके अलावा, गाड़ियों का बेड़ा चलाना आम तौर पर बस बनाने वाली कंपनियों के मुख्य कारोबार में शामिल नहीं होता है।
(2) पुरानी इलेक्ट्रिक बसों को बेचने के लिए बाज़ार का मजबूत न होना:
इस मॉडल की एक और समस्या यह है कि बैंक अक्सर लीजिंग से होने वाली कमाई को मान्यता नहीं देते हैं। इसलिए, वे इस कमाई को आधार मानकर निर्माता कंपनियों को ज़्यादा लोन देने में हिचकिचाते हैं। इलेक्ट्रिक बसें भले ही ज्यादा महंगी हों, लेकिन इनकी बिक्री कम होने का अंदेशा है। इसकी एक वजह यह है कि इन बसों की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि आसपास चार्जिंग स्टेशन हैं या नहीं और पुरानी हो चुकी इलेक्ट्रिक बसों को बेचने के लिए बाज़ार है या नहीं। डीजल बसों की तुलना में फिलहाल, पुरानी इलेक्ट्रिक बसों को बेचने का बाज़ार बहुत मजबूत नहीं है।
(3) निर्माता कंपनी को कम पैसे मिलना:
निर्माता कंपनी आम तौर पर किलोमीटर चलने के आधार पर ‘पे ऐज़ यू गो’ मॉडल पर लीज का करार करती है। इस वजह से, अगर बस कम चलती है तो निर्माता कंपनी को कम पैसे मिलते हैं। इस समस्या का समाधान यह हो सकता है कि लीज के करार को दो भागों में बांटा जाए। पहला भाग बस को चलाने वाले ऑपरेटर को बस उपलब्ध कराने के लिए एक तयशुदा शुल्क हो। दूसरा भाग बस कितने किलोमीटर चलती है, उसके हिसाब से मिलने वाला पैसा हो।
इन चुनौतियों का संभावित समाधान
एक नई कंपनी बनाना: कई निवेशकों से पैसा इकट्ठा करके एक नई कंपनी बनाई जा सकती है। यह कंपनी बसें खरीदेगी और फिर उन्हें लीज पर देगी। इससे बस बनाने वाली कंपनियों पर बोझ कम होगा। साथ ही, इस तरह से जुटाए गए पैसों को दोबारा निवेश के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और इसकी गारंटी भी ली जा सकती है। खासकर इंटरनेशनल डेवलपमेंट बैंकों से मिलने वाले वित्त की मदद से ऐसा किया जा सकता है। यह नई कंपनी इस बात की गारंटी भी दे सकती है कि अगर बस चलाने वाली कंपनी समय पर भुगतान नहीं कर पाती है, तो वह घाटे की भरपाई करेगी।
सरकार का लक्ष्य
भारत ने 2022 में नेशनल इलेक्ट्रिक बस प्रोग्राम शुरू किया है जिसके तहत सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 50000 इलेक्ट्रिक बसें चलाना है। गौरतलब है कि भारत में पहले से ही दो प्रोग्राम चल रहे हैं जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देते हैं – फेम (फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ़ इलेक्ट्रिक व्हीकल) और पीएम इ-बस योजना। भारत और भी महत्वाकांक्षी योजना बना रहा है, जिसके तहत अगले सात सालों में सड़क पर चल रही 8 लाख डीजल बसों को इलेक्ट्रिक बसों से बदल दिया जाएगा। फिलहाल, अनुमान है कि भारत में केवल 4000 इलेक्ट्रिक बसें ही चल रही हैं. यह 2015 से अब तक रजिस्टर हुई नई बसों का सिर्फ 1% है।
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