स्वास्थ्य सेवा में एआई

स्वास्थ्य सेवा में एआई – निगरानी, सटीकता और लागत की चुनौती

स्वास्थ्य सेवा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की आजकल खूब चर्चा है। माना जा रहा है कि एआई से स्वास्थ्य सेवा में लगने वाला खर्च कम होगा और कई स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होंगी। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर और ज़्यादा सटीक बनाने के लिए जिन एआई सिस्टम का उपयोग होता है, उनको चलाने और बनाए रखने के लिए बहुत सारे प्रशिक्षित लोगों की ज़रूरत होती है, जिससे लागत काफ़ी बढ़ जाती है।

उदाहरण के तौर पर, कैंसर के मरीज़ों को उनके इलाज के बारे में कठिन फ़ैसले लेने में मदद करना ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर) की ज़िम्मेदारी होती है, लेकिन अक्सर वे इसमें चूक जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिल्वेनिया हेल्थ सिस्टम में, एक आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम डॉक्टरों को मरीज़ों के इलाज के साथ-साथ उनके जीवन के अंतिम समय की प्राथमिकताओं—जैसे कि दर्द प्रबंधन, मेडिकल ट्रीटमेंट की सीमाएँ, और भावनात्मक समर्थन—पर भी चर्चा करने के लिए प्रेरित करता है। यह एल्गोरिदम मृत्यु की संभावना का अनुमान लगाता है। लेकिन, 2022 के एक अध्ययन ने इस एआई तकनीक की एक बड़ी खामी उजागर कर दी: कोविड-19 महामारी के दौरान इस एल्गोरिदम की सटीकता 7% तक गिर गई। इस चूक के चलते, यह एआई-आधारित उपकरण सैकड़ों बार डॉक्टरों को मरीज़ों के साथ ज़रूरी बातचीत शुरू कराने में नाकाम रहा, जिसके चलते संभवतः कई मरीज़ों को बेवजह कीमोथेरेपी (कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने वाली दवाओं का उपयोग) से गुज़रना पड़ा। अफ़सोस की बात यह है कि कई संस्थान अपने एआई उपकरणों (उत्पादों) की नियमित जाँच (प्रदर्शन की निगरानी) तक नहीं करते, जिससे मरीज़ों के लिए जोखिम और बढ़ जाता है।

एल्गोरिदम में कमियाँ एक ऐसी समस्या हैं जिसके बारे में कंप्यूटर के वैज्ञानिक और डॉक्टर बहुत समय से जानते हैं। लेकिन अब इसने अस्पताल के बड़े अधिकारियों और खोज करने वाले वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है। आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) पर बने सिस्टम को ठीक से चलाने के लिए, लगातार निगरानी और प्रशिक्षित लोगों की ज़रूरत होती है। इसका सीधा मतलब यह है कि इन नए उपकरणों को बिना गलती के चलाने के लिए, इंसानों पर और मशीनों पर, दोनों पर बहुत ज़्यादा पैसा ख़र्च करना पड़ता है—जितना सोचा गया था उससे कहीं ज़्यादा। सोचा यह गया था कि एआई से स्वास्थ्य सेवाओं का ख़र्च कम होगा और लोगों को बेहतर इलाज मिलेगा, पर असल में अभी, इसके इस्तेमाल से इलाज का ख़र्च लगभग 20% तक बढ़ जाता है। साथ ही, कई अस्पताल, जहाँ इन एआई तकनीकों का उपयोग मरीजों के इलाज के लिए किया जा रहा है, उनके पास इस इन एआई तकनीकों को अच्छी तरह से जाँचने के लिए पर्याप्त पैसा ही नहीं है।

आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) ने कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी जड़ें जमा ली हैं। अब मरीज़ों की मृत्यु या स्वास्थ्य बिगड़ने के ख़तरे का सटीक अंदाज़ा लगाने, बीमारियों का निदान सुझाने, डॉक्टरों के काम का बोझ घटाने के लिए मुलाकातों का रिकॉर्ड और संक्षिप्त विवरण तैयार करने, और बीमा दावों को तेज़ी से मंज़ूरी देने जैसे ज़रूरी कामों में भी एआई एल्गोरिदम का इस्तेमाल हो रहा है।

टेक्नोलॉजी के जानकारों का दावा है कि स्वास्थ्य सेवाओं में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल बहुत ही मुनाफ़े का सौदा साबित हो सकता है, और उनका मानना है कि आने वाले समय में यह तकनीक हर जगह मौजूद होगी और फ़ायदा पहुँचाएगी। इस बात का सबूत यह है कि निवेश फ़र्म बेसेमर वेंचर पार्टनर्स ने लगभग 20 ऐसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) स्टार्टअप का अनुमान लगाया है जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और एक साल में लगभग 82 करोड़ रुपये प्रति स्टार्टअप कमाएँगे।

यह जाँचना कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने वाले ये उत्पाद सही ढंग से काम कर रहे हैं या नहीं, एक चुनौती है। और यह पता लगाना कि वे लगातार काम करते रहें, या उनके सॉफ़्टवेयर में कोई खराबी आ गई है, और भी मुश्किल है।

येल मेडिसिन के एक हालिया अध्ययन ने स्वास्थ्य सेवा में इस्तेमाल होने वाले 6 “अर्ली वार्निंग सिस्टम”—ये ऐसे सिस्टम हैं जो मरीज़ों की स्थिति पर नज़र रखते हैं और डॉक्टरों को तब चेतावनी देते हैं जब उनकी हालत अचानक बिगड़ने की आशंका होती है—के प्रदर्शन में भारी भिन्नता का खुलासा किया। इस गहन परीक्षण के लिए एक बेहद प्रभावी एल्गोरिथम का उपयोग किया गया, और अध्ययन के सभी आँकड़ों का विश्लेषण सुपरकंप्यूटर द्वारा किया गया। अध्ययन में पाया गया कि इन 6 “अर्ली वार्निंग एआई सिस्टम” के प्रदर्शन में काफ़ी ज़्यादा अंतर था।

अस्पतालों और दूसरे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के सामने एक बड़ी चुनौती है: अपनी ज़रूरतों के हिसाब से सबसे अच्छा आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम चुनना। न तो हर अस्पताल या डॉक्टर के पास सुपरकंप्यूटर होता है, और न ही एआई के लिए कोई ‘कंज्यूमर रिपोर्ट्स’—यानी कोई ऐसी रिपोर्ट जो अलग-अलग एआई एल्गोरिदम की तुलना करके बताए कि कौन सा बेहतर है—मौजूद हैं। लेकिन सबसे ज़रूरी बात यह है कि आज हमारे पास कोई ऐसा तय तरीका नहीं है जिससे यह पता चल सके कि अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले एआई एल्गोरिदम की जाँच कैसे करें, उन्हें देखभाल कैसे करें, और यह कैसे देखें कि वे सही काम कर रहे हैं या नहीं, जब उन्हें किसी अस्पताल में लगाया जाता है। इस कमी के कारण, अस्पताल अंधेरे में तीर चलाने जैसे हैं।

आजकल कुछ डॉक्टरों के कार्यालयों में एक नई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है जिसे “एम्बिएंट डॉक्यूमेंटेशन” कहा जाता है। यह आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित एक ऐसा सहायक है जो डॉक्टर और मरीज़ों की मुलाकातों का एक संक्षिप्त विवरण तैयार करता है—यह तकनीक मरीज़ों की देखभाल को बेहतर बनाने के उद्देश्य से विकसित की गई है। इस तकनीक में काफ़ी निवेश भी हो रहा है—हाल ही में डिजिटल स्वास्थ्य में निवेश करने वाली प्रमुख फ़र्म “रॉक हेल्थ” के निवेशकों ने इन कंपनियों में लगभग 29 अरब रुपये लगाए थे। लेकिन, एक बड़ी चुनौती यह है कि इन उपकरणों के आउटपुट की जाँच के लिए कोई मानक नहीं है। ज़रा सोचिए, अगर ये उपकरण मरीज़ की जानकारी को गलत तरीके से रिकॉर्ड कर लें, तो इससे मरीज़ के इलाज पर कितना बुरा असर पड़ सकता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह देखने के लिए कि क्या ‘चैटजीपीटी’ और दूसरे “लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स” मरीज़ों के मेडिकल इतिहास का सही संक्षिप्त विवरण दे सकते हैं, एक अध्ययन किया। उन्होंने इन मॉडल्स द्वारा तैयार किए गए विवरणों की तुलना डॉक्टरों द्वारा लिखे गए विवरणों से की। नतीजा यह निकला कि सबसे अच्छे नतीजों में भी मॉडल्स द्वारा दी गई जानकारी में 35% तक ग़लतियाँ थीं—यह एक बहुत चिंताजनक बात है।

कभी-कभी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम के विफल होने के पीछे ठोस कारण होते हैं। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक अस्पताल पहले ‘A’ नाम की लैब से टेस्ट करवाता था, और एआई एल्गोरिदम को उस लैब के टेस्ट रिजल्ट के हिसाब से ट्रेन किया गया था। अब अगर अस्पताल ‘B’ नाम की एक नई लैब से टेस्ट करवाने लगे, तो नई लैब के टेस्ट रिजल्ट ‘A’ लैब से अलग हो सकते हैं। इस बदलाव की वजह से, एआई एल्गोरिदम सही नतीजे नहीं दे पाएगा, क्योंकि उसे नए तरह के डेटा के हिसाब से ट्रेन नहीं किया गया है। लेकिन, कई बार ऐसा भी होता है कि बिना किसी साफ़ वजह के भी समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं।

इसी तरह, बॉस्टन के मास जनरल ब्रिंघम (अमेरिका का एक स्वास्थ्य सेवा संस्थान) के “पर्सनलाइज्ड मेडिसिन प्रोग्राम” में एक अजीब गड़बड़ी देखने को मिली। यहाँ, डीएनए से जुड़ी जानकारी खोजने में जेनेटिक काउंसलरों की मदद करने के लिए एक एप्लिकेशन का परीक्षण किया जा रहा था। लेकिन, हैरानी की बात यह थी कि जब एक ही सवाल बार-बार पूछा गया, तो यह एप्लिकेशन हर बार अलग-अलग जवाब दे रहा था! इससे साफ़ पता चलता है कि इस तकनीक को अभी और बेहतर बनाने की ज़रूरत है।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक चौंकाने वाली बात सामने आई: सिर्फ़ दो आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडलों की जाँच करने में, यह देखने के लिए कि वे कितने भरोसेमंद हैं और सही जानकारी देते हैं, आठ से दस महीने का लंबा समय और 115 मानव-घंटे का काम लगा। इससे पता चलता है कि एआई सिस्टम की जाँच करना कितना मुश्किल काम है।

आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) की निगरानी कैसे की जाए, यह एक बड़ी बहस का मुद्दा है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि एआई को ही एआई की निगरानी करनी चाहिए, और इसके लिए कुछ डेटा विशेषज्ञों की भी ज़रूरत होगी। सुनने में यह विचार काफ़ी आकर्षक लगता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसा करने में काफ़ी पैसा खर्च होगा, और अस्पतालों के सीमित बजट और एआई विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए, यह एक बेहद मुश्किल काम है। यह एक विरोधाभास है—एआई की निगरानी के लिए और ज़्यादा एआई और विशेषज्ञों की ज़रूरत, जबकि यही दोनों चीज़ें (पैसा और विशेषज्ञ) कम हैं।

कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया की जहाँ आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) ही एआई का ‘बॉस’ होगा—एक एआई दूसरे एआई की निगरानी करेगा। यह सुनने में भले ही रोमांचक लगे, लेकिन यह एक बड़ी चुनौती भी है। क्या हम वास्तव में इस तरह के नियंत्रण को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं? और इस तरह के एआई-आधारित निगरानी तंत्र को संभालने के लिए हमें कितने और प्रशिक्षित लोगों की ज़रूरत होगी?


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